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Two days National Seminar on – Relevance of Yoga in Present Scenario

आधुनिक परिप्रेक्ष्य में योग की उपादेयता

(Relevance of Yoga in Present Scenario)

एस. एल. बावा डी. ए. वी. महाविद्यालय बटाला में संस्कृत-विभाग द्वारा भारतीय दार्शनिक अनुसन्धान परिषद्,(ICPR) नई दिल्ली के सौजन्य से प्राचार्य डॉ. वरिन्दर भाटिया की अध्यक्षता और संस्कृत विभागाध्यक्ष डॉ. नवीन चन्द की देख-रेख में  ‘आधुनिक परिप्रेक्ष्य में योग की उपादेयता‘ ‘Relevance of Yoga in Present Scenario’  विषय पर द्वि-दिवसीय राष्ट्रीय आन्तर्जालिक संगोष्ठी (नेशनल वैबिनार) का आयोजन 03-04 जुलाई, 2020 को किया गया। इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में मुख्य-वक्ताओं के रूप में प्रो. लखवीर सिन्ह, अध्यक्ष एवम् प्रोफेसर, स्नातकोत्तर कन्या महाविद्यालय सै. 42, चण्डीगढ़, डॉ. उषा जैसवाल, असिस्टेंट प्रोफेसर, योग-विभाग, देव संस्कृति विश्वविद्यालय हरिद्वार, श्रीमान शक्ति मौदगिल, प्रोफेशनल योग थैरेपिस्ट एण्ड होलिस्टिक लाइफ स्टाईल एक्सपर्ट औन्लाइन माध्यम से जुड़े। इस राष्ट्रीय वैबिनार में पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, झारखण्ड, कर्णाटक इत्यादि 18 प्रदेशों से 350 प्रतिभागियों ने पंजीकरण करवाया एवम् भाग लिया।

प्राचार्य डॉ. वरिन्दर भाटिया जी ने इस राष्ट्रीय वैबिनार के दोनों दिन वक्ताओं का एवम् सभी प्रतिभागियों का स्वागत किया । उन्होने कहा किइस वेबिनार का मुख्य उद्देश्य हमारे समाज और युवा पीढी को यह सन्देश देना है कि योगाभ्यास में प्रत्येक रोग को नष्ट करने की और सकारात्मक सोच को बनाने की शक्ति होती है, इसलिए हमें प्रतिदिन योगाभ्यास करके अपनी इम्युनिटी बढानी चाहिए।

प्रथम दिवस के मुख्य वक्ता के रूप में प्रो. लखवीर सिन्ह जी ने पातञ्जल योगसूत्र का सन्दर्भ देते हुए बताया कि योग मात्र आसन और प्रणायाम का अभ्यास नहीं है, अपितु यह शरीर और मस्तिष्क के सामाञ्जस्य से आत्मा का परमात्मा से मिलन है। प्रो. सिन्ह ने बताया कि योग आज की विधा नहीं, अपितु हजारों वर्षों से चली आ रही भारतीय जीवन कला है। जिसे महर्षि पतञ्जलि ने सूत्रवद्ध किया है। इसके बाद अनेक विद्वानों ने इस पर भाष्य लिखे, अनेक दार्शनिकों ने अपने दर्शन के अनुसार योग को विभिन्न अंगों को प्रस्तुत किया है। कार्यक्रम के दूसरे वक्ता डॉ. उषा जैसवाल ने अपने वक्तव्य में प्राणिक हिलिंग, पञ्चकर्म और पञ्चतत्त्व का मानव-जीवन में उपयोगिता और व्यवहारिकता पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि मनुष्य का शरीर पञ्चतत्त्व- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश से बना है और इन्हीं को आत्मसात् करके ऊर्जा प्राप्त होती है। साथ ही उन्होंने प्रयोगिक विधि से करके भी बताया कि कैसे प्राणायामों की सहायता से हम स्वस्थ, सकारात्मक  एवम् सन्तुलित जीवन जी सकते हैं।

वेबिनार के दूसरे दिन योग-विशेषज्ञ श्रीमान् शक्ति मौदगिल ने अपने सैद्धान्तिक सत्र में बताया कि मानव की शारीरिक और मानसिक ऊर्जा को पोषित करने में आहार, व्यवहार, आचार एवम् विचार सहायक सिद्ध होते हैं, जिसको इन्होंने विस्तृत रूप में व्याख्यायित किया। इसके बाद आयुष मन्त्रालय द्वारा अन्तर्राष्ट्रीय योग दिवस पर बनाये गये योग प्रोटोकोल के सभी आसन एवम् प्राणायामों को प्रायोगिक विधि से करके दिखाया और साथ ही करने की विधि को, उसके लाभ एवम् सावधानियों को अति सूक्षमता के साथ प्रस्तुत किया।

वेबिनार के दोनों दिन महाविद्यालय के अर्थशास्त्र-विभागाध्यक्ष डॉ. मूनीष यादव ने वक्ताओं, तथा प्रतिभागियों का एवम् विशेष रूप से भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् (ICPR) नई दिल्ली का धन्यवाद किया जिनके विशेष सहयोग से इस राष्ट्रीय आन्तर्जालिक संगोष्ठी का सफल आयोजन किया गया और साथ ही डॉ. यादव जी ने कहा कि इस करोना काल में हमें सुरक्षा एवम् तनावमुक्त रखने में  योग सर्वाधिक सहायक है। कार्यक्रम की निर्विघ्न सिद्धता में महाविद्यालय के शिक्षकवृन्दों,डॉ. गुरवन्त सिन्ह, डॉ. वनीत कुमार, डॉ. सरोज बाला एवम् प्रो. रूपकिरणप्रीत कौर ने सहयोग दिया एवम् श्री सुनील जोशी तथा श्री कुनाल नारंग ने तकनिकी सहायता प्रदान करके कार्यक्रम को सुसम्पन्न किया।

कार्यक्रम-संयोजक,

डॉ. नवीन चन्द,

संस्कृत-विभाग।

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